Aarti ke Niyam : पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती, जानिए इसके पीछे का बड़ा कारण



Aarti ke Niyam


Aarti ke Niyam : हिन्दू धर्म (Hindu dharm) में देवी-देवताओं की पूजा के पश्चात आरती (Aarti) की जाती है। कोई भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठान बिना आरती के पूरा नहीं माना जाता है। चाहे मंदिर हो या घर सभी जगह नियम से आरती की जाती है। ऐसा माना जाता है कि आरती करने के बाद ही कोई भी पूजा संपन्न होती है और उस पूजा का पर्याप्त फल प्राप्त होता है। आज के लेख में हम जानेंगे कि आरती कैसे की जाये, आरती के प्रकार और आरती करने के नियम के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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आरती क्या है (Aarti Kya hain)

आरती के महत्व को सर्वप्रथम ‘‘स्कन्द पुराण’’ (Skand Puran) में बताया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार (According to Skand Puran) यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की संपूर्ण विधि नहीं जानता, लेकिन भगवान की हो रही आरती में श्रद्धा पूर्वक शामिल होता है तो उसकी पूजा स्वीकार हो जाती है। सामान्यतः आरती के दीपक (Aarti ke deepak) में रूई की बत्ती बनाकर अपने इष्ट देव के सामने घुमाया जाता है। यह दीपक तेल या देशी घी का होना चाहिए। कुछ लोग कपूर की भी आरती करते हैं। आरती के साथ संगीत (भजन) तथा नृत्य भी होता है। कई बार ताली की ध्वनि करके भी आरती की जाती है। मंदिरों में आरती प्रातःकाल, सांय एवं रात्रि (शयन) में मंदिर के द्वार बंद होने से पहले की जाती है। 

आरती की सामग्री 

(Aarti ki samagri)

आरती में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सभी सामग्रियों का एक विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें सम्मिलित होने मात्र से भी बहुत पुण्य मिलता है। आरती की थाल में पुष्प, कपूर, बत्ती, धूप दीप रखकर भगवान के सामने घुमाया जाता है। मंदिरों में आरती के समय घंटा, ढोल, नगाडे, घड़ियाल आदि भी बजाये जाते हैं।

आरती कैसे करते हैं 

(Aarti kaise karte hain)

आरती की प्रक्रिया मे एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष सामन रखकर भगवान के सामने घुमाते है। सामान्य तौर पर आरती की थाल में पांच बत्तियों होती हैं। इन्ही बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती करने के लिए एक साफ दीपक लेकर उसमें शुद्ध घी डालते हैं। उसमें विषम संख्या (जैसे ३, ५ या ७) में बत्तियां जलाकर इष्ट देव के समक्ष आरती उतारते हैं। कपूर से की गई आरती का भी बहुत महत्व है। आरती को सबसे पहले भगवान के चरणों की तरफ चार बार, नाभि की तरफ दो बार, मुख की तरफ एक बार और सिर से लेकर चरणों तक सात बार आरती की जाती है। इस तरह आरती कुल 14 बार घुमाई जानी चाहिए। 

आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरी धुले हुए वस्त्र से, चैथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग (मस्तिष्क, हृदय, दोनों कंधे, हाथ व घुटने) से। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का भी विशेष महत्व होता है। हर देवता की आरती आप जितने श्रद्धा और भाव से आरती गाते है वह उतनी ही ज्यादा आपको ऊपर प्रभावशाली होती है।

आरती कितनी बार करनी चाहिए 

(Aarti kitni baar karni chaiye)

आरती प्रायः दिन में एक से पांच बार की जाती है। हर प्रकार के धामिक समारोह एवं त्यौहारों में पूजा के अंत में आरती करते हैं। आरती की थाली या दीपक (या सहस्र दीप) को ईष्ट देव की मूर्ति के समक्ष ऊपर से नीचे, गोलाकार घुमाया जाता है। इसे घुमाने की एक निश्चित संख्या भी हो सकती है, व गोले के व्यास भी कई हो सकते हैं। आरती का गायन भी समूह द्वारा गाया जाता है इसमें संगीत आदि की संगत भी दी जाती है। आरती होने के बाद पंडित या आरती करने वाला, आरती के दीपक को उपस्थित भक्त-समूह में घुमाता है, व लोग अपने दोनों हाथों को नीचे की ओर उलटा कर जोड़ लेते हैं व आरती पर घुमा कर अपने मस्तक पर लगाते हैं। आरती लेकर उसको मस्तक पर लगाने के पीछे भी दो कारण होते हैं। एक मान्यता अनुसार ईश्वर की शक्ति उस आरती में समा जाती है, जिसका अंश भक्त अपने अपने मस्तक पर ले लेते हैं। दूसरी मान्यता यह है कि ईश्वर की नजर उतारी जाती है, या बलाएं ली जाती हैं, व भक्तजन उसे इस प्रकार अपने ऊपर लेने की भावना करते हैं,। इस भाव का उद्देश्य ईश्वर के प्रति अपना समर्पण व प्रेम जताना होता है।


आरती का दीपक 

(Aarti ka deepak)

शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि आरती को कभी भी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए आरती करने से पहले और आरती करने के बाद आरती के दीपक को किसी थाली या फिर किसी ऊंची जगह में ही रखना चाहिएं। स्वच्छ हाथों से ही दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाने के बाद और जलाने से पहले अपने हाथों को अवश्य धोना चाहिएं। 


आरती के बाद करें ये काम 

(Aarti ke baad kare ye kaam)

हिंदू धर्म शास्त्रों (Hindu dharm sastra) के मुताबिक किसी भी पूजा पाठ में देवी-देवताओं की आरती करने के बाद जल से आचमन जरूर करवाना चाहिए। इसके लिए दीपक को रखकर पुष्प या फिर पूजा वाले चम्मच से थोड़े से जल लेकर दीपक के चारों ओर दो बार घुमाकर जल को धरती पर छोड़ दिया जाता है। इसके बाद पहले आरती को भगवान को दिखाया जाता है। तत्पश्चात भगवान से अपनी भूल चूक के लिए माफी मांगे और फिर घर के अन्य लोगों को आरती दी जाती है। 


पूजा के बाद आरती क्यों होती है 

(Pooja ke baad aarti kyu hoti hain)

पुराणों के अनुसार कोई भी पूजा तब तक पूर्ण नहीं होती है जब तक उसका समापन आरती से ना किया जाये। आरती करने का अर्थ होता है कि अब पूजन समाप्त हो गया है और हम हाथ जोड़कर ईश्वर के समक्ष अपनी कुशलता की कामना करते है। पूजा के दौरान अगर कोई गलती हो जाती है तो आरती करके हम ईश्वर से पूजा के दौरान हुई भूल के लिए क्षमा मांगते हैं। 

आरती के नियम 

(Aarti ke niyam)

बिना पूजा, उपासना, मंत्र आदि के बिना केवल आरती नही की जाती। आरती के पहले कोई पूजा, भजन, मंत्र, उपासना आदि को करना जरूरी होता है।

हमेश पूजा आदि के समाप्त होने पर ही आरती करने का विधान है।

आरती करते समय दीपक के साथ साथ फूल और के कुमकुम भी अवश्य रखें।

आरती कपूर या घी के दीपक से ही करनी चाहिए। 

आरती के बाद थाल मे रखे फूल और कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए। आरती लेने के बाद कम से कम 5 मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए। 

शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा है कि जो मनुष्य घी के दीपक से आरती करता है। वो स्वर्णलोक में निवास करता है। जो व्यक्ति कपूर से आरती है उसे अनंत लोक में प्रवेश मिलता है।

इस तरह ना करें आरती 

(Is tarah na kare aarti)

आरती की थाल में 5 या 7 बत्ती होनी चाहिए। कभी भी आरती एक वत्ती वाले दीपक से नही करनी चाहिए। आरती के समय ढोल, नगाड़े, शंख का उपयोग जरूरत करना चाहिए। बिना इनके आरती अधूरी होती है। 

आरती के दीपक को कभी भी धरती पर नहीं रखना चाहिए। दीपक को हमेशा थाली में रखकर भगवान के समक्ष रखना चाहिए। 

आरती का दीपक कभी भी पश्चिम या दक्षिण की तरफ नहीं जलाना चाहिए इससे दुख पड़ता है और धन की हानि होती है।

आरती कमी भी बैठ कर नही करनी चाहिए। आरती कभी भी उल्टी नहीं घुमानी चाहिए। इसे घड़ी की दिशा के अनुसार घुमाना चाहिए। 

भगवान के प्रति श्रद्धा को प्रकट करने का भाव है आरती। आरती करने से चित्त शान्त और मन प्रसन्न होता है। 


(आज के लेख में आरती से संबंधित सभी चीजों के बारे में विस्तार से जाना। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें ताकि हिन्दू धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। अगर आपको हमारे ब्लाॅग पर प्रकाशित लेख अच्छे लगे तो हमारे Facebook Page से जुड़े व इसी तरह के लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हमारे ब्लाॅग  hindudharmsansaar.blogspot.com  के साथ।)


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